Thursday, November 12, 2009

एक उरान यह भी

वर्षों की तमन्ना ,बचपन की ख्वाहिश
मरासिम को तोर उरान की चाहत
क्या द्वैतों की है यह सिफारिश
दिल को बेचैनी को आज मिली रहत
खैर, उरान भरने को तैयार था मैं
और तैयार थी कंचन बालाएं
और तैयार था पायलट
और शायद, तैयार था शमां भी

अपनी सीट बेल्तें बाँध लें
विमान उरने के लिए तैयार है
और आपात कालीन स्थितियों के सुझाव के साथ
विमान हवा में लहराता गया,ऊपर उठता गया; और फिर स्थिर
अब आप अपनी बेल्तें खोल सकते हैं, पर सुरक्षा द्रिस्तोकोन से बांधे रखना ही उचित है
shayad होस्टेस को F.O.S का ज्ञान था
और चूँकि विमान स्थिर था और मेरे मन में कौतुहल हुआ
मैंने नीचे देखा
शायद तंद्रा टूटी और अफ्स्सोस हुआ क्यूंकि वहां नीचे तोह
राजा का महल था और पास ही में झुग्गी झोम्प्रे
पर
अभी मुझे कुछ असामान्य लगा
क्यूंकि दोनों के बीच फर्क करना पोस्सिब्ले ना लगा
और जो दिखा वोह था एक कतारबद्ध , लयात्मक रिहाइशी इलाका
फिर मेरी विवेचना को ठेंस पाहुंचा, कानों में दर्द बढ़ता जा रहा था
दोनों हाथों से मैंने कानो को ढाका और होस्टेस को देख एक बार फिर मुस्कुराकर मैं सो गया
फिर मेरी नींद विमान के ज़मीन से टकराने से खुली, और
में अपने हाथों के जोर से अपने को बचाए बैठा रहा
और विमान से उतरकर मैंने फैसला किया, आगे से विमान की सवारी से तौबा-तौबा
पर अनायास, मैंने सोचा और भगवन पे मुझे दया आ गयी
आखिर वह भी तोह ऊंचाई पर है: शायद इसलिए उसे सबकुछ क्रमबद्ध dikhta हैऔर
शायद इसीलिए उसे गरीबी और chaos दिखाई नहीं देते